Tuesday, October 27, 2009

सड़क हादसा

कल शाम एक हकिकत देखा ,वाकया ऐसा था की मैं क्लास लेकर वापस घर आ रहा था और बिच मैं हीं एक मेरे मित्र का फ़ोन आया की शाम को बैठते हैं ,अब जब बैठने की बात आती है तो दिल थोड़ा बगावत करने पर उतारू हो जाता है ,और हम अपना रास्ता बदल बैठे, बिच मैं निजामुद्दीन स्टेशन के करीब देखा, लोगों की भीड़ लगी हुई है ,और करीब गया तो देखा दो लड़के, उम्र २५ के आस पास होगी बेदह हीं ख़राब हालत मैं सड़क पे मरे हुए थे ,मेरी ये आदत रही है की एक बार रुक के हालात का जायजा ले लेता हूँ शायद मैं कुछ मदद कर सकूं। लेकिन उन लोगों की ऐसी हालत थी की मैं ख़ुद बुरी तरीके से बिखर गया था, लग रहा था मानों मेरी हीं मौत हो गई है और मैं बस रोने लगा हूँ ,ब्लू लाइन बस आगे खड़ी थी उसके सिसे बिखरे पड़े थे शायद आदमी के गुस्से का शिकार हुआ था बस ,और भीर बस अफ़सोस कर रही थी ,मानों दो मुर्गे हलाल होने के पहले हीं रास्ते पे गिर कर मर गए होंगे ,दोनों के पैर सर के पास आ गए थे और मोटरसाईकिल पापड़ बन चुकी थी ,मालूम चला की वो दोनों भाई थे और अपने मां पिताजी को स्टेशन छोड़ कर वापस अपने घर जा रहे थे ,रोड पर इंतना जाम लग चुका था की उनके मृत शारीर को ले जनि वाली गाड़ी उस जगह पर पहूच हीं नहीं पा रही थी ,खैर पालिक की गाड़ी आई और दोनों को ले गई । और मैं अपने घर चला आया, लगा मेरी यात्रा ख़त्म हो गई है ,सर फट रहा था और दिल पर इतना गहरा असर हुआ था ,या यूँ कह लें हुआ है की मैं आने वाले कल के बारे मैं कुछ नहीं कह सकता हो सकता है मेरा भी पैर सर के पास पड़ा हो कभी ,सब कुछ झूठा लगने लगा है अब । लगता है कभी मोटरसाईकिल चलाना छोड़ दूँ ,लेकिन उससे होगा क्या मेरी टांग मेरे सर के पास आज नहीं तो कल जरूर आएगी । और शायद अख़बार वाले भी यही समझते हैं इसीलिए बस दो लाइन की ख़बर थी आज की दो लड़कों की सड़क हादसे मैं मौत .... बस इतना हीं लिखा था ,और उसी पन्ने पे कहीं उससे जायदा बड़ी ख़बर ये थी की राज्यपाल के सेकेट्री की गाड़ी चोरी हो गई है..............................

Saturday, September 19, 2009

अमृता

अमृता .......... शायद एक शब्द हो तुम्हारे लिए पर सबसे करीबी एहसास है मेरे लिए ............
शायद जिन्दगी में शुमार तुम्हारे लिए पर साँस है मेरे लिए .........
शायद पल भर का साथ हो तुम्हारे लिए पर तमाम जन्मों का आस है मेरे लिए ...............
बेसाख्ता उसका बोलना तुम्हें याद नां रहे शायद उसकी हर बात मगर ख़ास है मेरे लिए ........

Friday, September 18, 2009

मांगो नहीं अब तुम्हारा कुछ भी नहीं .

काश तुम्हें हम बता पाते की हम तुम्हारी दी हुई इस ज़िन्दगी मैं कितने खुश हैं ,जैसे मां और पिताजी ने इतना कुछ दिया है की मांगने की ज़रूरत हीं नहीं पड़ी ,और तुमने भी इतना कुछ दिया है की और क्या मांगूं तुमसे । कभी कधार मेरे हाथ तुम्हारे सामनेकुछ मांगने को बेबस हो जाते हैं लेकिन तुमने हीं दिल दिया है जिससे हम ख़ुद को समझा भी लेते हैं।
जैसे कभी पैसे नहीं होने पे घर का नम्बर घुमाने का मन करता है और अचानक से दिल इजाज़त नहीं देता है। वैसा हीं है सब कुछ मेरे दोस्त बस कुछ चाहने से पहले दिल का दामन थाम के मांगिए नहीं तो शायद आपको लगेगा आप अपने बुढे पिता से उनकी रोटी मांग रहे हैं ख़ुद का पेट पालने के लिए । और फिर ऊपर वाले से भी क्या मांगे हम, सब कुछ तो दिया हमें , अगर मांगें तो लगेगा की पास की बस्ती मैं रहने वाली फुलवातिया का बच्चा बिना दूध के मर गया ।

Wednesday, September 16, 2009

नयनों में तुम्हारे सारा आकाश सुरमई हो जाता है,
पंछी ,बादल सारे तुम्हारी आखों में बस जिंदगी पाते हैं ,हम क्या करें तुम हीं बताओ हम कैसे बादल बनके तुम्हारी आखों में बहा करें ?
तुम्हारा साथ ऐसा क्यों लगता है जैसे कोई शहद मधुमक्खी को लगता हो अपना ।

दिल की hasrat

दिल की हसरत यही रही कि हम दिल से तुमसे जुड़े रहें ,
मगर न जाने क्यूँ यह दिल हमेशा तुम्हारे दिल की आवाज़ से अनजान ही रहा।
वक्त आता भी रहा मगर फिर भी नां जाने क्यों मेरा दिल हमेशा तुम्हारे दिल का मेहमान ही रहा ,
काश हमें ये मालूम होता दिल कि आवाज़ से हीं साथ धड़कता है दिल तो शायद हम भी तुम्हारे रगों में बहने की कोशिश करते।

Thursday, August 27, 2009

आज शाम बारिश हुई और हम भींगे भी पर वो बात पिछले साल सी नहीं थी ,हम बचते बचाते तेज़ बारिश में बस सूखे रहना चाहते थे , लेकिन हम भिंग भी गए और वो पिछले साल की कोई याद भी नहीं आ पाई ,पता नहीं जैसे मानसून जैसे अब देर से आने लगा है वैसे हीं अब हमारे एहसास भी धीरे धीरे से और देर से आने लगे हैं .

Friday, July 31, 2009

इमरान हासमी

इमरान हासमी का रोना बिलखना इस बात का की उसे मुसलमान होने की सज़ा दी जा रही है और उसे मुंबई में कोई अपना घर देने को टायर नहीं है, ये बात कहाँ तक जायज़ है और कहाँ तक नहीं इसे कहना मेरे ख्याल से जायदा कठिन नहीं है , क्या ३० करोड़ मुसलमान आज सड़क पे रह रहे हैं , या सबसे अहम् बात यह है की क्या हासमी साहब आज सड़क पे रह रहे हैं ,क्या हिन्दुओं ने उसकी फ़िल्म नहीं देखी हैं क्या ,क्या किसी अभिनेत्री ने हासमी साहब के साथ काम करने के लिए कभी मन किया है क्या ,इस देश की जनता ने उसे या किसी मुस्लमान को उसके मुसलमान होने पर घर या नौकरी पे नहीं रखा है क्या ,हासमी साहब को पाकिस्तान जन चाहिए और देखना चाहिए की वहां हिन्दुओं पे क्या गुज़रती है ,फिर इस देश में अल्पसंख्यक होने की बात पे फायदा उठायें और हिंदू और मुस्लमान के बीच नफरत की दरार को और गहरा करें ,सरम आनीचाहिए उनलोगों को जो ये कहते हैं की में मुसलमान होने की या हिंदू होने का दर्द उठा रहा हूँ ,