दिल की हसरत यही रही कि हम दिल से तुमसे जुड़े रहें ,
मगर न जाने क्यूँ यह दिल हमेशा तुम्हारे दिल की आवाज़ से अनजान ही रहा।
वक्त आता भी रहा मगर फिर भी नां जाने क्यों मेरा दिल हमेशा तुम्हारे दिल का मेहमान ही रहा ,
काश हमें ये मालूम होता दिल कि आवाज़ से हीं साथ धड़कता है दिल तो शायद हम भी तुम्हारे रगों में बहने की कोशिश करते।
Wednesday, September 16, 2009
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